याद

तुम्हे अपने सामने देखकर जैसे ऐसा लगा कोई मीठा सा स्वपन है, अभी आकर कोई जगा देगा और तुम्हारा हसीन चेहरा अभी हवा के झोंके की तरह पलक झपकते ही अदृश्य हो जाएगा। बस एक पल मुट्ठी में कैद करलूं तुम्हे, तुम्हारी वह दिलकश मुस्कान, तुम्हारी आँखें ऊपर उठी और तुमने मुझे देखा, मैंने आस पास देखा, पीछे भी देखा, कोई नहीं था, तुम मुझे ही निहार रहे थे।

सर्द सी वो रैना, और उस रैना में तुम अग्नि उत्सव में हाथ ताप रहे थे। एकटक निहारती ही रही तुम्हे, चेहरे पर तुम्हरे अग्नि के बढ़ते हुए रंग जैसे सुनहरी सी मखमली छाप छोड़े जा रहे थे, तुम्हारा आकर्षक सा चेहरा और सुभग हो चला था।

तुम्हारी ख़ूबसूरत आँखें, मुस्कुरा उठी, तुम्हारा कण कण जैसे महक रहा था, खुशी से, प्यार से। अनायास ही खिंची सी बढ़ चली तुम्हारी ओर।

उस रात्रि में जैसे वादा था, जीवन भर के साथ का, तेरे संग जीने का, तेरे ही संग मर भी जाने का, हर एक ख़्वाहिश में, हर एक ख़्वाब में, हर एक दुःख में, हर मुश्किल में, हर जीवन के हास में, परिहास में साथ निभाने का वह अनकहा वादा जाने कैसे मेरे दिल ने तुमसे कर लिया था।

मेरे साथ चल पड़े तुम, सितारों भरे आसमान के नीचे, जैसे हर एक तारा मेरे दिल की धड़कनों की तरह धड़क रहा हो , तुम्हारे संग चलते चलते उस अँधेरी रात में तारों की रौशनी में तुम्हारी वो तरंगे मुझ तक बेधड़क पहुँच रही थी। तुम्हारी बातों में वो हल्की हल्की प्रेम की रिमझिम ,वो मासूम सी कामना, खुद को मेरे करीब कर लेने की चाहत मुझे मेरी रूह तक महसूस हो रही थी।

तुम्हारी सुरम्य अदा पर कैसे न कोई रीझता, कैसे तुम्हारी वो लुभावनी सी हँसी इस जग से छुपी रह गयी ,या मेरी आँखों पर ये परदा कर दिया है खुदा ने, इस जिजीविषा ने जो बस केवल तुम्हारे लिए ही जन्मी है। विस्मित सी हूँ तुम्हे देखकर।

तुम मुझे प्रेयसी कहते हो, और जैसे चराचर जगत मुझे बरबस ही अपने प्रेमपाश में बांध लेता है। तुम्हारे प्रेम नगर में मैं जैसे यायावर बनके भटक रही हूँ और कोई छोर नहीं है, अगाध प्रेम है, अनन्य ,अदम्य। शायद तुम्हीं किनारा हो, अज्ञेय। मैं तैरना नहीं जानती, डूब रही हूँ इस दरिया में। साँस लेना भी दुष्कर हो गया है। मुझे अपने आप से ही अजनबी स्पर्श होने लगा है। जैसे मुझपर तुम्हारा ही इख़्तियार हो गया है, मेरी बिना अनुमति के मेरी जुस्तजू बस तुम पर ही आकर मुकम्मल हुई है।

तुम्हे पढ़ जाऊँ एक ही नज़र में, ऐसे लिखना चाहती हूँ।तुम्हे कुछ भी कहने की जरुरत न पड़े ऐसे घुलना चाहती हूँ, तुमसे पहले ही तुम्हे समझ जाऊँ, ऐसे तुमसे इश्क़ करना चाहती हूँ, तुम मिलो तो ऐसे मिलो जैसे कोई कतरा न मिला हो किसी रूहानियत में, तुमसे जुड़ जाऊँ ऐसे जैसे कुछ बिखरा न हो इस भवसागर में।

तुम्हारी नवाज़िशों पर ठहर गया है ये दिल, तुम्हारे चेहरे के नूर पर फ़िदा है ये मन, इज़्तिरार है तुम्हारे आने का इस जीवन में, की तुम्हारे संग रक़्स करना चाहता है, तुम्हारी क़ुरबत में रहना चाहता है, फ़ना होकर पूरी शिद्दत से तुमसे इश्क़ करना चाहता है। मिलन की इस रफ़्तार की अनुभूति करना चाहता है, रिवायतों से परे एक अलग प्रेम कहानी लिखना चाहता है। दुनिया की मिसालें कम हो जाएँ ऐसे तुझे अपना बनाना चाहता है। अपने एहसास की साँझ में एक नया सवेरा सम्मिलित करना चाहता है और खुदा बुलाये जब रूह को रूह से कोई मुख़्तलिफ़ न कर पाए उस नज़ाकत से, उस वस्ल से वाबस्ता होना चाहता है।

इस संसार के प्रेम करने की परिभाषा को बदल देना चाहता है।इस जन्म मिलोगे तो मुमकिन करेंगे, अभी तो बस तुम्हे नक्श दिखाकर ही सुकून का बस एक ख़्वाब सजाना चाहता है।

Author: Onesha

She is the funny one! Has flair for drama, loves to write when happy! You might hate her first story, but maybe you’ll like the next. She is the master of words, but believes actions speak louder than words. 1sha Rastogi, founder of 1shablog.com.

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