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अपराजिता

तुम्हारे मेरे मिलने का सिलसिला चलता रहा, मेरी शामें हसीन और रातें रंगीन हो गयी । हर सुबह तुम्हारा चेहरा देखे बिना लगता ही नहीं था जैसे सवेरा हुआ हो । तुम्हें अपने आगोश में भर कर, तुम्हारे होठों को छू कर मेरी हर सुबह में तुमने अपनी रूह की जो महक मेरे मन में छोड़ दी थी