आवरण
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आवरण

तुम्हारे साथ उस प्रेम दिवस के शामोत्सव में मुझे पिछली रात की याद हो आई, और होठों पर अनायास ही मुस्कान उभर आयी, तुम्हारे हाथ थामे जैसे छोड़ने का मन ही नहीं हो रहा था,