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भेंट

तुमने मेरे अंदर कॉफ़ी शॉप में जाने के लिए दरवाज़ा खोला । तुम्हारी कातिलाना मुस्कान, जो की तुम मुझे बार बार मार रहे थे । बोलते हुए तुम्हारे गालों पर डिंपल पड़ रहे थे , मैं तुम्हे देखकर हैरान थी । ऐसा सुन्दर चेहरा, कैसे कोई नहीं रीझा तुम पर या ये कोई चाल है ?

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अपराजिता

तुम्हारे मेरे मिलने का सिलसिला चलता रहा, मेरी शामें हसीन और रातें रंगीन हो गयी । हर सुबह तुम्हारा चेहरा देखे बिना लगता ही नहीं था जैसे सवेरा हुआ हो । तुम्हें अपने आगोश में भर कर, तुम्हारे होठों को छू कर मेरी हर सुबह में तुमने अपनी रूह की जो महक मेरे मन में छोड़ दी थी