समन्वय

साँझ हुई और मुझे तुम्हारी याद हो आयी। तुम्हें शाम की अदरक इलाइची वाली चाय कितनी पसंद थी ये शायद मेरे अलावा कोई नहीं जनता था, आज भी जब तुम मुझसे फ़ोन पर बात करती हो तो चाय का ज़िक्र ज़रूर करती हो ।

मैंने एक कप चाय बोली और टपरी पर साथ चाय पीते हुए एक रूमानी जोड़े को देखने लगा । शायद ऐसे ही लगते थे हम भी । तुम्हारे साथ में, मुझे अलग ही एहसास होता था । मैं, मैं नहीं रह जाता था कुछ और ही बन जाता था, मुझे लगता था इस मोहब्बत में इतनी ताकत है की मुझ जैसे इंसान को भी बदलने पर मज़बूर होना पड़ा ।

“साहब चाय ।” मैंने अपनी चाय उठाई और आज का सर्द मौसम देख कर सोचने लगा , इसी मौसम में देखा था तुम्हें मैंने पहली बार ।

मुँह से सिगरेट का धुआँ छोड़ते हुए , तुम्हारी हँसी , कुछ अनायास सा ही मैं खींच सा गया तुम्हारी ओर । तुम सिगरेट और चाय पीने अक्सर आया करती थी । कुछ तो था तुम्हारे अंदर, जो औरों में नहीं था । एक नयापन, ज़िंदगी में कुछ अलग करने का जज़्बा, सब कुछ कर जाने की चाहत, कहीं भी न रुकने की आदत, गज़ब का जूनून । मैं भी फीका सा लगता था तुम्हारे आगे ।

पर तुम रुक गयी मेरे लिए , तुमने अपना लिया मुझे, तुमने मुझे वो दिया जो मुझे लगता था मैं कभी हासिल नहीं कर पाऊंगा ।अपना सब कुछ । मुझे मिली तुम । मैंने कभी खुद को तुम्हारे लायक नहीं समझा, पर खुद को तुम्हारे लायक बनाने की कोशिश में पा ही गया तुम्हें ।

शादी के तीन साल मेरे ज़िंदगी की वो खूबसूरत सालों में से हैं जिन्हे मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा । शादी से पहले तुमसे चाय के बहाने मिलने के लिए जो कुछ मोती से पल मिलते थे उसी में खुश था मैं । तुम जब थक कर आती थी अपनी ख्वाहिशों को पूरा करके , तुम्हारे लिए खाना बनाया करता था मैं, और जब तुम मुझे उन नज़रों से देखती थी तो खुद खिलाके तुम्हें अपनी बाहों में सुकून देता था मैं ।

मुझे एहसास था वो कौनसी बातें हैं जिसे तुम बर्दाश्त नहीं करोगी, सब छोड़ दिया मैंने, उन्ही चीज़ों में मैं भी आऊंगा कभी मैंने नहीं सोचा था । मैं जनता था तुम्हें उन्मुक्त रहना पसंद था । कभी तुम्हे बांधने की कोशिश नहीं की मैंने । पर रिश्ता ही ऐसा है तेरा मेरा, प्यार बांध ही लेता है इंसान को , शादी के बाद मैंने तुम्हें देखा पहली बार प्यार में, इश्क़ में मेरे, अपने ख्वाबों के खिलाफ, अपनी हर आदत से अलगाव कर बैठी तुम।मेरा ख़्याल रखने लगी ।

तुम्हें बदलता देख मुझे जो खुशी हुई, उन्हें शब्दों में शायद ही बयान कर पाऊँ मैं । तुम खो सी गयी थी , उदास भी रहने लगी थी, मुझे जितनी तुमसे मोहब्बत थी उससे कहीं ज्यादा तुम्हें खुद से हुआ करती थी, वो जूनून कहीं दिखाई नहीं पड़ता अब । ख़ामोश हो गयी मेरी रिमानी ।

मैंने खुद को समझाके एक निर्णय कर लिया, अपनी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल फैसला । रिमानी से अलग होने का फैसला । वो मुझमे और अपने ख्वाबों की ऊँचाइओ में समन्वय नहीं बैठा पा रही थी।कहीं न कहीं मैं अवरोध था उसकी उड़ान में । मैंने जिस दिन उसे अपना फैसला सुनाया, मेरे गले लग कर खूब रोई वो ।

शायद खुशी के आँसू थे । प्यार और ख्वाबों की लड़ाई में अक्सर इश्क़ बाजी मार लेता है और ख़्वाब पीछे छूट जाते हैं।इश्क़ पुराना हो जाता है और गिले शिकवे होने लगते हैं, तब ख़्वाब बिना पर के पंछी की तरह फड़फड़ाते हुए बाहर आना चाहते हैं, जिसका इश्क़ दम घोंट चुका होता है ।

मुझे लगता था हम दोनों मिलकर रिमानी का ख्वाब पूरा करेंगे । पर ऐसा नहीं हो सका, न हो सकता था । ख्वाब भी उसी के थे , उनको पूरा करने के अरमान भी उसी के थे । जब जीवन में कोई कुछ पाना चाहता है तो हमें लगता हैं, हम सब कुछ करें उसके लिए, पूरा सहयोग करें उसके लिए । पर सच ये है, जब हम किसी के लिए कुछ करते हैं तो बदले में अपेक्षा करते हैं की वो भी हमारे लिए उतना ही करे, उससे ज्यादा करे । निःस्वार्थ प्रेम, समझौता, समझ सब आपस में उलझ कर बस एक दूसरे की उम्मीदों को, जरूरतों को, अपेक्षाओं को पूरा करने में लग जाते हैं और इसे प्रेम कहते हैं । लड़ते रहो झगड़ते रहो पर साथ रहो इसे प्रेम कहते हैं । जीवन भर साथ बिता लो इसे प्रेम कहते हैं । प्रेम का असली मतलब कभी समझ ही नहीं पाते बेचारे । मैं समझना और समझाना भी नहीं चाहता ।

एक दूसरे की खुशी सर्वोपरि, वो सिर्फ साथ रहने से नहीं होती , कई बार कुर्बानी देनी पड़ती है इश्क़ में अपने ख़ुशी और ख्वाबों के लिए । अपने लिए तो सब करते हैं , जिससे प्रेम करते हैं उसके लिए कोई नहीं कर पाता । करेगा भी कैसे कोई भला, अपना नुकसान , अपने प्रियतम को दूर जाते हुए, बिना अपने साथ के ख्वाबों की उड़ान भरते हुए, वो खुशी महसूस करते हुए कौन देख सकता है?

चाय खत्म हुई । मेरे विचार इतने उन्नत नहीं थे । पर रिमानी के प्यार में प्यार का मतलब सीख गया था मैं । मैं भी नहीं देख पाया उसे खुद से दूर , खुद को सम्हाल पाना किसी जंग से काम नहीं था । पर पी गया कड़वा घूँट प्यार की खातिर , अपनी रिमानी की खातिर ।

Author: Onesha

She is the funny one! Has flair for drama, loves to write when happy! You might hate her first story, but maybe you’ll like the next. She is the master of words, but believes actions speak louder than words. 1sha Rastogi, founder of 1shablog.com.

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