ज़ख्म
आज भी दिल ख़ुश नहीं है, शायद तुम मिल जाओ तो भी शायद जख्म गहरे और बेहिसाब हैं, इन आँखों की नमी आज भी याद है मुझे पिछली शाम की तरह। दिल में आज भी दर्द हो उठता है तेरी बातें होती हैं जब। क्यों तेरी गलियों में घूमने को दिल आज भी बेचैन है, क्यों तेरे बारे में सब कुछ जानने को बेताब है, क्यों ये तुझसे आज भी प्यार करता है ?