अनुरक्ति
नज़रें चौखट से उठी तो ऐसा लगा मानो तुम ही हो, आज भी हर जगह तुम्हें ही ढूँढ़ता रहता हूँ। सच में तुम हो, आज इतने जमाने बाद, तुम्हें अपने सामने पाकर ऐसा लगा की शायद आज बरसों बाद दिल की आरज़ू कबूल हुई हो। तुम मेरी तरफ बढ़ी और रुक गयी जैसे मुआयना कर रही हो।