अनुरक्ति

नज़रें चौखट से उठी तो ऐसा लगा मानो तुम ही हो, आज भी हर जगह तुम्हें ही ढूँढ़ता रहता हूँ। सच में तुम हो, आज इतने जमाने बाद, तुम्हें अपने सामने पाकर ऐसा लगा की शायद आज बरसों बाद दिल की आरज़ू कबूल हुई हो। तुम मेरी तरफ बढ़ी और रुक गयी जैसे मुआयना कर रही हो।

“तुम आज यहाँ कैसे?” मीरा ने मुझसे प्रश्नात्मक लहज़े में पूछा। तुम्हारी आवाज़ सुनकर जैसे दिल की धड़कन धड़कना भूल बैठी हो। न गले लगाया, न हाथ थामा, बस यूँ ही देखती रही मुझे एकटक।

मैंने उसे अचानक देखा तो जान ही नहीं पाया कितने दिन हो गए हैं उसे देखे। वक़्त अब उसके चेहरे पर दिखने लगा था, उसकी आँखें मुझसे उसी तरह जवाब मांग रही थी जैसे रातों में मुझसे पूछा करती थी, कि कब तक मैं यूँ ही हमारे प्यार को छुपाता रहूँगा। और बस उसकी एक झलक देखकर मेरा अस्तित्व अतीत में चला गया, जहाँ हम दोनों एक दूसरे को बेहद चाहते थे।

मैंने नज़रें झुका ली और महादेव के मंदिर के अंदर की ओर कदम बढ़ा लिए। मन मस्तिष्क में एक ही ख़्वाहिश लिए मैंने महादेव को मनाना शुरू किया था की कहीं किसी रोज़ तुम मुझे मिल जाओ फिर से, मेरी हमेशा हो जाओ फिर से, कभी तुमसे मुँह नहीं मोडूँगा, हमेशा अपने सीने के करीब इस दिल में बसा के रखूँगा, पर आज तुम यूँ टकरा गयी हो, मुझे अपनी ख़्वाहिश टूटती सी दिखाई पड़ती है।

कितना बिखर गया था मैं जब तुम मुकर गयी अपने वादे से, मैं मानता था की तुम मुझसे हमेशा प्यार करोगी चाहे मैं कितना भी तुमसे छुपाऊं , इस जग से जाहिर भी न करूं पर तुम हमेशा मेरी ही रहोगी। गलत था मैं, ज्यादा तुम पर , हमारे प्यार पर यक़ीन कर बैठा , तुम्हारे मुँह से निकला एक एक झूठ सच मान बैठा , आखिर प्यार करता था। कितना करता था शायद ये नहीं बता सका तुम्हे, बस एक मौका चाहिए था तुम्हे मुझे छोड़ देने का, और मुझे एक मौका चाहिए था तुम्हे फिर से पा लेने का, अपना इश्क़ निभाने का।

कुछ सालों पहले की याद हो आयी जब घर से गाड़ी लेकर निकला, और यथावत महादेव के मंदिर से गुजरने लगा। सावन के चलते अक्सर गाड़ी मंदिर के सामने रुक जाया करती थी। आज तुम्हारी याद हो आयी, तुम भी हमेशा सावन के सोमवार मुझसे मंदिर चलने की ज़िद किया करती थी। लोगों की भीड़ भाड़ और भक्तों का मेला लगा रहता था, हल्के हल्के गाड़ी आगे बढ़ने लगी। मुझे तुम्हारी बारिश में भीगा सफ़ेद दुपट्टा याद आने लगा।

गाड़ी दौड़ने लगी और में तुम्हारी यादों में खो गया। गाने बज रहे थे, शायद तुम्हारी ही पसंद के थे, मैं तुम्हे जितना भुलाने की कोशिश करता उतना ही तुम्हारी यादों में डूबता जा रहा था, लबों से शब्द नदारद थे और कोई किनारा नहीं था, महीनों से पड़ा था इसी तरह तुम्हारे ख्वाबों की चाहत में, की शायद तुम्हारा मन बदल जाये तो तुम वापस आ जाओ।

उस दिन बहुत तेज़ बारिश हो रही थी। तुम्हारा पसंदीदा सफ़ेद रंग का कुर्ता पहन के तुम्हारे पास आया था, तुम्हे सफ़ेद रंग क्यों इतना पसंद था ? तुम्हे मख़मली दुपट्टे में देख कर, अपनी ओर खींच लिया तुम्हें, तुम्हारी काली आँखें, काजल सजी, तुम्हारे कानों की वो चाँदी की झुमकी, चेहरे पर आती तुम्हारी जुल्फें, कानों के पीछे कर ,तुम्हें पाने की चाहत में आगे बढ़ा और तुमने मेरे होठों पर अपनी उँगलियाँ रख दी।

“मेरे साथ मंदिर चलो सिद्धांत।” तुम्हारी इन आँखों में जैसे अनुरोध था। अपने लबों से चूम कर तुम्हारी उँगलियों को मैंने इनकार कर दिया था तुम्हें, तुम्हारे चेहरे पर मेरे हाथ ऐसे फिसले जैसे मेरा दिल तुम पर, बारिश में तुम्हें अपनी आगोश में भरकर, बस तुम्हें अपने साथ अपने पास रखना चाहता था।

“सिद्धांत, मुझसे प्यार नहीं करते तुम ?” तुमने मुझसे पूछा शायद यक़ीन अब खत्म होने लगा था।

“करता हूँ, पर तुम जानती हो, मैं इन सब में नहीं मानता।” मैंने तुम्हें अपनी बाँहों में फिर से भरते हुए कहा था।

“क्या मेरी खातिर तुम एक बार बस, सिर्फ एक बार मेरे साथ नहीं चलोगे ?” मेरा हाथ थामे वो मुझसे बोली।

“सब कुछ करूंगा तुम्हारे लिए, जो भी तुम कहोगी। “ कहकर मैंने उसे कसकर थाम लिया।

गाड़ी रुक गयी, तुम्हारी यादों से, उस दिन की हमारी मुलाक़ात से बाहर आया। तुम्हे पाने की सारी कोशिशें नाकाम हो चुकी थी , एक आखिरी आसरा था मेरे पास, तुम्हे वापस पाने का, महादेव। बारिश होने लगी और मैंने भी तुम्हे पाने की ज़िद पकड़ ली, महादेव से तुम्हें माँगा।

नंगे पैर जीवन में पहली बार मैंने मंदिर में कदम रखा, गंगाजल से भोले का अभिषेक किया और तप करते हुए ॐ नमः शिवाय का संकल्प लेकर तुम्हारे लिए प्रार्थना की, मेरी प्रेम कहानी अधूरी नहीं रहेगी , वो मेरी होकर ही रहेगी। तुम्हारे लिए तुम्हारे जैसा निर्जल और निराहार रहकर मैं बस अब एक ही आस लगाए बैठा था कि सिद्धांत और मीरा हमेशा साथ रहें , हमेशा के लिए एक हो जाएं।

पर महादेव भी तुम्हारे थे, तुम्हरी तरह मुझसे भी रुष्ट थे, सुनी ही नहीं मेरी , मीरा कभी मेरी नहीं हो सकी , पर मैंने आस नहीं छोड़ी , उसके छोड़ कर चले जाने के सालों बाद भी मैं महादेव के मंदिर नित्य जाता था , काश तुम्हारे साथ ही आया होता। आज तुम्हें देखकर ठिठक गया, क्या महादेव आज मेरी सुन रहे हैं, क्या ये वो ही मीरा है जो कभी मेरी हुआ करती थी।

महादेव की ओर देखा, और जैसे ही पलकें झुकी और आँखें बंद हुई, मुझे मीरा दिखाई देने लगी, मेरी मीरा और आँखों से अनुरक्ति के अविरल, दिव्य प्रेम के अनुपम अश्रु बहने लगे।

Author: Onesha

She is the funny one! Has flair for drama, loves to write when happy! You might hate her first story, but maybe you’ll like the next. She is the master of words, but believes actions speak louder than words. 1sha Rastogi, founder of 1shablog.com.

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