सावन

आज से भोलेनाथ का प्रिय सावन के महीने का आगाज़ हो चुका है। मौसम की हल्की हल्की बूँदें, सावन के एहसास को हवा में मिश्रित कर मन में आनंद घोल रही हैं। ॐ नमः शिवाय की गूँज सुनकर मन अति प्रसन्न हो चुका है। श्रावण मास की महिमा से कोई भी शिव प्रेमी अछूता नहीं रहा है। नीले आसमान में बिखरे बादलों और रिमझिम के समीप कहीं न कहीं, ये धरती भी भोले भंडारी के अधीन दिखाई पड़ती है। चारों ओर हरियाली और झूमते हुए पक्षी मित्र खुश होकर आकाश में तैर रहे हैं।

आज सावन का पहला सोमवार है, भोलेनाथ को देखने की इच्छा मन में जाग्रत हो गयी है। घर के आंगन की तुलसी को गंगाजल से स्नान कराकर वसुधा मंदिर जाने के लिए लालायित शिव आरती की थाली सजाये, मन में अपने प्रियतम का चेहरा लिए निकल पड़ी। उसने आज महादेव के पसंदीदा नीले रंग के वस्त्र पहने हैं। मंदिर के रास्ते में नीलकंठ का ध्यान करते हुए मन ही मन सोचने लगी, शिव को सृष्टि का संहार कर्ता क्यों कहा जाता है, जो महाकाल दिल के इतने भोले हैं , जिन्होंने इस संसार को बचाने के लिए सागर मंथन से निकला हलाहल विष पान कर लिया , उसे संहार का देवता क्यों माना जाता है विष पीते ही भोले का पूरा शरीर नीला पड़ गया था जिससे महादेव नीलकंठ कहलाये। कहते हैं उस विष में इतनी ताकत थी की धरती से जीवन का सारा अंश सोख लेती, महादेव न होते तो इस विषम संसार का अंत निकट ही था।

वसुधा महादेव का विस्मरण करते हुए द्वार पर पहुंची और उसने मंदिर के दरवाजे से अंदर देखा, शिव पार्वती संग विराज रहे थे। सावन रूपी हरे हरे वस्त्र मूर्ति को सुस्सजित कर रहे थे। वसुधा देखती ही रह गयी, मंदिर की चौखट को माथे से लगा, शिव के चरणों में सावन के पहले सोमवार के व्रत का संकल्प कर उसने बड़े प्रेम से अपने भोलेनाथ को प्रणाम किया।

मन में अपने प्रेमी की छवि बसाये शिव की आराधना करने लगी। अभी तक अपने इन हाथों में उसके हाथों का स्पर्श अनुभव कर रही वसुधा का ध्यान आज भोलेनाथ से हटकर अपने प्रियतम अमिष में हो गया था। ताम्र पात्र में गंगाजल भर कर शिव का अभिषेक करते वक़्त उसे ऐसा लग रहा था मानो वह अकेली नहीं है और अमिष का हाथ उसके हाथों में अभी तक उसी प्रकार महक रहा है जैसे पिछली शाम था। उसे शिव को अर्ध्य देते हुए अमिष की बातें याद आने लगी , और मन ही मन महादेव से प्राथना करने लगी की अमिष का कल रात का स्वपन सच हो।

रूद्राभिषेक जारी था, और वह महादेव और माँ पार्वती के दिव्य प्रेम के बारे में सोचने लगी। महादेव को सावन आखिर क्यों इतना प्रिय है? माँ पार्वती ने अपने कठोर तप से , निराहार रहकर महादेव को प्रसन्न किया था , तभी से महादेव को यह महीना विशेष प्रिय है। उनके त्याग, उनकी भक्ति भावना से मोहित होकर शिव जी ने माँ पार्वती से विवाह किया, जिसे महादेव की महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। महादेव का माँ गौरी से विवाहोत्सव, प्रेम की अभूतपूर्व अभिव्यक्ति।

वसुधा प्रेम के बारे में सोचने लगी, कैसे महादेव का निश्छल प्रेम , माँ पार्वती के लिए जग स्वरुप बन गया। वसुधा भी ऐसे ही अपने अमिष से प्रेम करना चाहती है, और यह भी जानती है अमिष भी उससे अप्रतिम स्नेह रखता है। भोलेनाथ की पूजा कर, अमिष को अपने मन में पति स्वरुप चाहत रखते हुए उसने भोलेनाथ और पार्वती जी से आशीर्वाद माँगा।

लोग राधा कृष्णा की कहानियाँ सुनाते हैं, उनकी प्रेम गाथाएं सुनते हैं, असली प्रेम तो महादेव और पार्वती जी का है, हर जन्म में पार्वती जी ने शिव से विवाह करने का प्रण लिया था। वसुधा के मन में अमिष को पाने की खुशी थी और भोलेनाथ की कृपा रूपी बारिश से ही उसे अमिष मिला था, वह मन में महादेव के इस सुखद उपहार के लिए आनंदित थी। भोलेनाथ उसकी वर्षों की तपस्या और व्रत से खुश थे, उसे अमिष जैसा साथी उन्होंने जैसे वरदान स्वरुप दिया था।

अपने मन में उमड़ रहे विचारों को महसूस कर रही वसुधा, आरती पूरी कर, भोलेनाथ से विदा लेने लगी। पुजारी जी ने चन्दन का बिंदु उसके माथे पर लगा उसे जल दिया, उसके हाथों में अमिष के हाथों का एहसास अभी तक नया था, अब वह भोलेनाथ की पूजा करने अकेले नहीं आना चाहती थी, हर सावन, अमिष के आने के लिए प्राथना करती थी , इस सावन उसका अमिष उसके साथ है, और अगले सावन वह अमिष के साथ ही महादेव का रुद्राभिषेक करना चाहती थी। उसने अपनी आँखें बंद करी और अमिष का चेहरा उसकी आँखों में समां गया, अपनी इच्छा महादेव से कहकर, वसुधा सावन की रिमझिम फुहारों में अपना अगला सावन सजाने लगी।

Author: Onesha

She is the funny one! Has flair for drama, loves to write when happy! You might hate her first story, but maybe you’ll like the next. She is the master of words, but believes actions speak louder than words. 1sha Rastogi, founder of 1shablog.com.

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